उस पार वो तो जाके इस पार देखते हैं
उस पार वो तो जाके इस पार देखते हैं
साहिल पे बैठे हम ही मझधार देखते हैं
ये जिंदगी हमारी उलझन का सिलसिला है
पहले से पहले अगली तैयार देखते हैं
दी है हमें हिदायत बचने की जिससे वाइज़
दुनियां को हम उसी का बीमार देखते हैं
बैठे हैं डाले डेरा इस राह के मुसाफ़िर
आने के तेरे जब से आसार देखते हैं
ग़म-ओ-खुशी से मौला बेज़ार मुझे कर दे
खुशियों के साये- साये आज़ार देखते हैं
गलियों का ईश्क़ की तज़र्बा हो गया शायद
अशआर जो भी कह दें दमदार देखते हैं
इस वास्ते ‘सरु’को सुबह-ओ-शाम छेड़ते हैं
गुस्से में भी ग़ज़ब का प्यार देखते हैं