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29 Nov 2016 · 1 min read

उस पार वो तो जाके इस पार देखते हैं

उस पार वो तो जाके इस पार देखते हैं
साहिल पे बैठे हम ही मझधार देखते हैं

ये जिंदगी हमारी उलझन का सिलसिला है
पहले से पहले अगली तैयार देखते हैं

दी है हमें हिदायत बचने की जिससे वाइज़
दुनियां को हम उसी का बीमार देखते हैं

बैठे हैं डाले डेरा इस राह के मुसाफ़िर
आने के तेरे जब से आसार देखते हैं

ग़म-ओ-खुशी से मौला बेज़ार मुझे कर दे
खुशियों के साये- साये आज़ार देखते हैं

गलियों का ईश्क़ की तज़र्बा हो गया शायद
अशआर जो भी कह दें दमदार देखते हैं

इस वास्ते ‘सरु’को सुबह-ओ-शाम छेड़ते हैं
गुस्से में भी ग़ज़ब का प्यार देखते हैं

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