उस पार की आबोहवां में जरासी मोहब्बत भर दे
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उस पार की आबोहवां में जरासी मोहब्बत भर दे
जमी को यकीं हो उस आसमाँ में मोहब्बत भर दे
कितनी लंबी है नुकीले तारों की ये उलझी दीवारे
बंझर जमी में खडी है, नम करके मोहब्बत भर दे
वस्ल की बातें चली थी तेरे मेरे मकानों के दरमियाँ
बातें ना कोई कड़वी हो,जुबाँ में भी मोहब्बत भर दे
तेरे ख़ाक के मजनू रहे होंगे तब भी सेहरा में प्यासे
कोई इक लैला के सुराई में दो बूंद मोहब्बत भर दे
बर्बाद कर गयी है ये सियासत अमन की रियासते
दो सरहदों के बीच बचे जज़्बातो में मोहब्बत भर दे
⚪️ ©®’अशांत’ शेखर
04/04/2023