उसे देख खिल गयीं थीं कलियांँ
तन्हाई में जीता हूंँ,
जब से छोड़ गई वो साथ,
जीवन में कितनी रौनक थी,
जब वो थी मेरे पास;
उसे देख बागों में
खिल गयीं थीं कलियांँ,
फूलों पर मकरंद चूसने
मंँडराती तितलियांँ;
लहराते उसके बाल देख,
नाच उठे थे मन-मोर,
जैसे काले घन को देख,
नाच उठते वन-मोर;
स्मित होठ की आभा उसकी,
मचायी दिल में हलचल,
जी करता उसे बाहुपाश में,
भर लूँ, करूंँ आलिंगन पलभर;
टूटी तंद्रा तो गायब थी वो,
आई नहीं दोबारा,
दिन का सपना टूट गया जब
श्रीमती ने झकझोरा।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)