उसी तीर से हुआ नशा उसको
बहर :- 1212 1122 1212 112/22
काफ़िया :- स्वर “ आ “ :::: रदीफ :- “उसको “
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**** उसी तीर से हुआ नशा उसको *****
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लगा था तीर जो उस दिन नहीं पता उसको,
उसी ही तीर से तब से हुआ नशा उसको।।
दिखा वहीं पर पहले सा मौन राह पर,
हुआ अधीर वहाँ देख कर खड़ा उसको।
उसी मोड़ पर क्या देखता वहाँ रास्ता,
मगर नहीं दे सका रोक हौंसला उसको।
कभी कहीं पर कोई नहीँ मिला साथी,
नहीं कही दर मिलता ख़ुदा यदा उसको।
कभी अगर गलती हो मदद नही करता,
सही नही लगता फैसला दिया उसको।
यहाँ वहाँ मनसीरत दिखे सजा कटता,
जुदा जुदा रहता आज वो लगा उसको।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)