उसने सोचा न था
उसने सोचा न था
अबतक खुद को नहीं निहारा था उसने
न मन्दिर देखा,न मस्जिद देखी थी उसने
देखा बस सौतेली माँ का व्यवहार उसने
क्या कसूर था उसका बस यही सोचा उसने।
साँसो के गीतों संग गुंजरित सुरों में उसके
ताल न कभी मिलाया अपने को उसने
जगमग ज्योतित सा दिया रूप प्रभु ने उसको
ना मनदीप जलाया कभी किसी ने उसका।
अंतहीन निरुद्देश्य सा लगता जीवन उसको
ना पल बैठे कोई भाव यही सोचा उसने
कुछ थी चुपचाप सिसब होगा नही पता था उसको
फिर भी आना था एक राजकुमार जीवन मे उसके।
रो-रोकर करती प्रभु को याद सदा ही वो
तनिक नही आभास हुआ था उसको
नजर पड़ेगी एक राजकुमार की कभी उसपर
सपना सा लगा उसे तो ये सब सुनकर।
सुनते ही दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी थी
शोर हृदय को न भाया ओर मिलन हुआ राजकुमार से
भ्रम की गठरी बाँध खुली उसकी सौतेली बहनों की भी
ठिठकी पर कर ना कुछ पाई वो माँ बेटियां अब।
थके पाँव,सी आज वह भी बनी राजकुमारी
ईश्वर का मिला इशारा उसको पक्षधरता पर
खुश हुई माफ किया अपनी सौतेली बहनों को
माँ को गले लगा वह चली बन अब राजकुमारी।
खुश हो चली वो अब पिया के संग
नही था उसके मन मे किसी के लिए भी गिला
नई दुनिया बसाने चली पी के संग
महलों की रानी अब बन चली वो।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद