उसके मेरे दरमियाँ खाई ना थी
उसने कोई बात समझाई ना थी
अक़्ल मुझको इस लिए आई ना थी
फासला तो कर दिया हालात ने
उसके मेरे दरमियाँ खाई ना थी
नकहतें क्यों हैं फज़ा में इस क़दर
आपने जब ज़ुल्फ लहराई ना थी
दिल बहुत बेचैन था बेताब था
याद-ए-जानाँ जब तलक आई ना थी
आशिक़ी के इब्तिदाई दौर में
क्या तुम्हें मुश्किल कोई आई ना थी
मेरे दिल को डस रही थी तीरगी
जब किसी की जलवा आराई ना थी
एक दीवाना बड़ा होशियार था
जब तलक ज़ंजीर पहनाई ना थी
मर्तबा ‘ख़ालिद’ को जितना मिल गया
फ़िक्र में इतनी तवानाई ना थी
~ Khalid Nadeem Budauni