उसके दर पर आज आना हुआ
उसके दर पर आज आना हुआ
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उसके दर पर आज आना हुआ,
याद फिर से बीता जमाना हुआ।
देखा मुखड़ा खूबसूरत बलां,
दिल तो पागल सा दिवाना हुआ।
नजरें झट से चेहरे पर जा टिकी,
नम ऑंखे आँसू छिपाना हुआ।
क्या कहता मै सूझता ही नहीं,
हरा फिर से जख्म पुराना हुआ।
अश्रु झरने से खूब बहते रहे,
वाक्या मुश्किल यूँ बताना हुआ।
वापिस घर बदहाल आना पड़ा,
बेगाना उनका ठिकाना हुआ।
मनसीरत हालात काबू नहीं,
पल वो बमुश्किल बिताना हुआ।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)