कत्ल खुलेआम
उसके चले जाने से कुछ ऐसा सितम हुआ हम पर !
मत पूछो क्या क्या जूल्म हुआ हम पर !
पत्ता टूट कर गिरता है जैसे पेड़ों से
कुछ इश कदर कतलेआम हुआ हम पर !!
उसने हमारी और जो मुड़ कर देखना छोड़ दिया !
हमारी ज़िंदगी ने भी अब आगे बढ़ना छोड़ दिया !
कुछ इस कदर टूटे हैं हम उसके चले जाने से ,
ऐसा लगता है जैसेे इस दिल ने धड़कना छोड़ दिया !!
हम ना कहते थे, ये जिंदगी तुम्हारे नाम हो गया !
यहाँ तो हमारा कत्ल ही खुलेआम हो गया !
देखो, हमें छोड़कर चले गये तुम,
और दुनिया में मशहुर हमारा नाम हो गया !!
–दिवाकर महतो
राँची (झारखंड)