उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
सुध रही न मुझे अब सुबह शाम की।
होश गुम से हुए हैं ख्यालों में यूँ
अब रही न खबर आराम की।
मैं तो लाखों गजल यूँ लुटाता रहा
चिट्ठी आयी कोई न मेरे नाम की
जंचता ही नहीं कुछ उसके सिवा
जिंदगी अब रही न किसी काम की।
~ माधुरी महाकाश