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22 Jul 2017 · 1 min read

उसकी याद बहुत आई

शब – ए – तारीख उसकी याद बहुत आई
जम के घटा उमड़ी फिर जम के बरसात आई,

उस मजहबी यादों की चद्दर पूरी ही काली है
जितनी काजल आँख मे सब बहके गालों पे आई,

घटाओं की गड़गड़ शोर औ जोरों का तूफान
सिकता की वो ख्वाब सब तकिये पे ढह आई,

ज़ुस्तज़ू क्या थी औ स्याह शब मे क्या मिला
याद के कुनबे ने घेरा, औ दोनों आंखें भर आई,

जब कभी वो आयेगे तो पूरा किस्सा बोल देंगे
तुम नहीं आए तो आखिर ये याद तेरी क्यूँ आई,

देर शब मे सोचकर माथे की नसें दुखा डाली
करवट बदल-बदल के जाने फिर कैसे सुबहा आई?
……………………
निर्मल सिंह ‘नीर’
दिनांक – 23 जुलाई, 2017

406 Views
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