उसकी मासूमियत को हम आँखों से पढ़ लेते हैं
हमने खुद ही उन्हें हमसे खफ़ा होने की वजह दे दी,
कि गुस्से में उनके चेहरे की खूबसूरती बढ़ जाती है।
रूठना मनाना न हो तो जैसे, मन में उमंग नहीं उठती,
नाराज़गियों से गुज़रकर ही नज़दीकियाँ बढ़ जाती हैं।
उनकी मायूसियों को हम आँखों से पढ़ लेते है,
वैसे हमसे छुपाने को वो, कितनी ही कहानियाँ गढ़ जाती है।
————-शैंकी भाटिया
अक्टूबर 2, 2016