उसकी आँखें
रोज़ तकती हैं उसकी आँखे
देखतीं हैं सबकुछ उसकी आँखें
भँवरे का तड़पना , तडपते रहना
हर रोज़ देखतीं हैं आँखें ।।
कई बार मैंने कोशिश की थी
देखूँ किसे तकती हैं आँखें
आँखों में तो गुल खिलें थें
न जाने किससे की थीं बातें
रहस्य बना था आँखों का तब तक
जबतक मैंने बस उनको देखा
मृगतृष्णा में हर पल भटका
पर मैं तो बस वहीँ पड़ा था ।।
उसकी आँखों से मैंने देखा
अपनी आँखें बंद जब करके
हर तरफ बस मैं हीं मैं था
और चुपचाप तकती थीं “उसकी आँखें”
…..अर्श