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17 Jan 2021 · 1 min read

उसका चाँद सा चेहरा

उसका चाँद सा रोशन चेहरा और कोयल सा गाना
उस पर यौवन का श्रृंगार देख आईना देखते जाना

वो स्वप्निल नैनो की सुरमई मधुशाला से भरें जाम
उसे देखने के मेरे अरमानों के प्याले भर भर जाना

हमारे समाने दर्पण लगा और दर्पण में वो दिखती है
सच मे है क्या उसका तसब्बुर से बाहर निकल आना

हमारा अक्स भी तो करने लगा है अब शक हम पर
उलझन में हूँ की लोग कहते, चश्मा पड़ेगा बनवाना

मैं परिंदा नादाँ मेरी सरहदे ना तुम तैयार करो लोगो
जहां दिखेगी मोहब्बत वही मेरा ,अब ठौर ठिकाना

गर मेरा इश्क मंजूर नहीं तो मुझे ये खुदा मंजूर नहीं
उसे ख़ुदा बनाया तो भूल गया ,मंदिर मस्जिद जाना

अब के मौसम में बरसों से मुरझाये फूल खिल उठे
अशोक इश्क हुआ है ज़माने को जाकर यह बताना

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

1 Like · 248 Views
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