उसका चाँद सा चेहरा
उसका चाँद सा रोशन चेहरा और कोयल सा गाना
उस पर यौवन का श्रृंगार देख आईना देखते जाना
वो स्वप्निल नैनो की सुरमई मधुशाला से भरें जाम
उसे देखने के मेरे अरमानों के प्याले भर भर जाना
हमारे समाने दर्पण लगा और दर्पण में वो दिखती है
सच मे है क्या उसका तसब्बुर से बाहर निकल आना
हमारा अक्स भी तो करने लगा है अब शक हम पर
उलझन में हूँ की लोग कहते, चश्मा पड़ेगा बनवाना
मैं परिंदा नादाँ मेरी सरहदे ना तुम तैयार करो लोगो
जहां दिखेगी मोहब्बत वही मेरा ,अब ठौर ठिकाना
गर मेरा इश्क मंजूर नहीं तो मुझे ये खुदा मंजूर नहीं
उसे ख़ुदा बनाया तो भूल गया ,मंदिर मस्जिद जाना
अब के मौसम में बरसों से मुरझाये फूल खिल उठे
अशोक इश्क हुआ है ज़माने को जाकर यह बताना
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से