उषा का जन्म
जब हुआ उषा का जन्म, मृदुल-
शीतल-सुरभित समीर डोली
मुर्गे की बांग सुनाई दी,
सुन पड़ी धतूरे की बोली
विहगों ने त्याग बसेरा निज
कलरव से जग को जगा दिया
शैथिल्य-निराशा-कुण्ठा को
जग के जीवन से भगा दिया
फिर से दुनिया ने गति पायी,
घर-घर जलपान लगा बनने
मुनियों के आश्रम मुखर हुए,
इत-उत यज्ञाग्नि लगी जलने
कुछ हाथ जोड़, कुछ हाथ बांध
जनसेवा में सन्नद्ध हुए
जो परमेश्वर के परम भक्त,
वे उसके प्रति प्रतिबद्ध हुए
करके गुरुओं का पद-वन्दन,
सुख पाते हैं अन्तेवासी
प्रात: की छवि नयनाभिराम,
युग-युग से अब तक अविनाशी
यह गृही-विरागी-अनुरागी
सब पर आनन्द लुटाती है
भरती है सबमें नवोत्साह,
जन-जन के मन को भाती है ।
– महेशचन्द्र त्रिपाठी