उल्फ़ते मोहब्बत में उसकी हम।
उल्फ़ते मोहब्बत में उसकी हम पतंगों की तरह जल जाएंगे।
गर आया तूफान भी तो हम परिंदों की तरह ना उड़ कर जाएंगे।।1।।
मत दो इतनी भी चाहत ए सनम यूँ इश्क में हमकों।
कि बारिश आने पर रेत के घरौंदों की तरह हम यूं ही डह जाएंगे।।2।।
इतनी खूलूश-ए-मोहब्बत में मेरे महबूब तेरी तो हम।
तेरे घर पर हम बिन बुलाए मेहमानों की तरह आकर ठहर जाएंगे।।3।।
जिंदगी में अगर कभी फंस गया तू कही पर मेरे जां नशीं।
तो तुझको बचाने की खातिर हम झूठ के पुलिंदों की तरह बंध जाएंगें।।4।।
कबसे खड़े हैं हम मोहल्ले में तेरे घर की सामनें वाली गली में।
इशारा दो अब हमें जानें का लफंगों की तरह कल फिर आएंगे।।5।।
खामोश हैं हम बड़े तेरे हर इक लगाए मुझ पर इल्जाम पर।
अब इतनी भी हदे पार ना करो कि हम गैरों की तरह लड़ जाएँगे।।6।।
अभी अभी तो हुआ हैं इश्क मेरे दिले नादाँ को आपसे।
इतना हक़ जताओगे तो हम खाविंदो की तरह तुम्हारे हो जायंगे।।7।।
कभी शक मत करना वतन परिस्ती पर ऐ मेरे दोस्तों।
देखने आना इक दिन तिरंगे में लिपट कर जब हम अपने घर आएगें।।8।।
सोच समझकर बोला कर तू हमेशा यहां की आवाम में।
तेरे अल्फ़ाज हैं दंगों की तरह ये सारे शहर में यूं ही फैल जाएंगें।।9।।
आ कहीं साथ में दूर चले पहाड़ों पर रात ठहरने के लिए।
सुबह आफताब-ए-रोशनी में चांदी की बूदों की तरह झिलमिलायेंगे।।10।।
यह धुआँ-धुआँ सा क्या उठ रहा है वहाँ आसमानों पर।
आ चले सभी मिलके उस उजड़ी बस्ती में लोंगों को फिर से बसाएंगे।।11।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ