उल्लासों के विश्वासों के,
उल्लासों के विश्वासों के,
परिहानसों के आभासों के।
संप्रभुता के रोचकता के,
नौतिकता के मानवता के।
इत शव, उत शव,
कैसा उत्सव…??
😢प्रणय प्रभात😢
उल्लासों के विश्वासों के,
परिहानसों के आभासों के।
संप्रभुता के रोचकता के,
नौतिकता के मानवता के।
इत शव, उत शव,
कैसा उत्सव…??
😢प्रणय प्रभात😢