— @ उलझी रहने दे @–
उलझी है तो उलझी ही रहने दे
अगर सुलझ गयी तो क्या जिन्दगी है
संघर्ष नही कर पाए इस में अगर
तो फिर कैसी रब से बन्दगी है !
न किया अपने हाथों से कुछ
तो क्या फायदा इनके साथ का
गर पैरों से न चल पाया तो
क्या लेना देना इस जिस्म का !!
ठोकर खाओ खूब खाओ
अपने बल पर कुछ कर के दिखाओ
हाथ फैला के मांग लेना आसान है
खुद से जरा पहाड़ पर पहुँच के दिखाओ !!
जिन्दगी रोजाना नया संघर्ष दिखाती है
वक्त दर वक्त भेष बदल कर आती है
हौंसला टूटने न देना खुद का कभी
आये हो तो अपना रास्ता खुद बना के दिखाओ !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ