उलझा हूँ, ज़िंदगी की हरेक गुत्थियाँ सुलझाने में
उलझा हूँ, ज़िंदगी की हरेक गुत्थियाँ सुलझाने में
जब से दस्तक दी है दर्द ने मेरे सिराने में
बड़ी मशक्कत से पाला था मैंने एक भ्रम
ठोकरों ने बताया,नही होता,अपना कोई इस ज़माने मे
दोस्ती इतनी अच्छी भी नहीं कि भूल बैठो ख़ुद को
दोस्त ही वार करता है पीछे से जख्म को सहलाने मे
बेस्वार्थ प्यार की डोर से जुड़ी है, माँ
वरना स्वार्थ की डोर ने जोड़े रखा है रिश्तों को ज़माने में
माँ की गोद ने भूला दिया जहाँ के दर्द को
कोई जादू हो, जैसे माँ के सिराने में