#उलझन
#उलझन
रूत आये रूत जाये_हर बरस यारो।
ना ठहरेंगी उलझने_जीवन में यारो।।
कुछ माह सर्दी का_जहाँ में बसना।
मीठी मीठी थंडी थंडी_आहट देकर जाना।।
फिर रूत गर्मी दे_उलझनो का चटका।
ओ भी ठहर जाता है_जो था बेकार भटका।।
आयेगा खुबसूरत_ यादो का सावन।
रिम झीम बूँदे गिरे_तृप्त हुये धरती गगन।।
जो भी जनमा_धरती पे यारो।
उलझनों में दिखेगा _अटका हुआ प्यारो।।
खुशियाँ दो खुशियाँ लो_हर मौसम प्यार करो।
सबको जाना है_जीवन मुसाफिर है यारो।।
रूत आये रूत जाये_हर बरस यारो।
ना ठहरेंगी उलझनें _जीवन में यारो।।
स्वरचित – कृष्णा वाघमारे, कुंभार पिंपळगाव, ता. घनसावंगी जि. जालना 431211, महाराष्ट्र.