उलझन
बड़ी उलझन जिंदगी में
जिंदगी के साथ जो सदा भरमाते हैं।
कौन अपना कौन पराया
इसी उलझन में उलझे ज़िंदगी बिताते हैं।
अपनी भावनाओं को स्वयं से छुपाकर
जिंदगी का साथ हम सदा निभाते है।
अपने एहसासों को बंद कर सीने में
हर पल जिंदगी का हम जिये जाते हैं।
एक आस मन में पाले,
जज्बातों का मोल हो कुछ इस तरह से,
बेमोल नही बन पाए हमारी कोमल भावनाएं,
अपने जज्बातों को सीने में दफन कर जाते हैं।
अपनी सीमाओं का भान है
पर दिल को कैसे बोलो समझाये।
चाहत इस दिल को चाँद की,
बताओ मयंक को कहाँ से हम लेकर आये।
प्रेम है निश्छल निर्मल
स्वतः स्फूर्त मन की कोमल भावना।
प्रेम को समाज संस्कार रीति रिवाजों का डर
दिखाकर
अपने ह्रदय में राज सा हम छुपाते जाते हैं।
काश की भावनाओं को समझ लें कोई
उसकी भी हो मेरे प्रति कोमल भावनाएं।
इस चमत्कार की आस में
जिंदगी का हर गम भुलाकर दिल से मुस्कुराते हैं।