उलझन में रहता हूँ
मैं बनकर प्यार का मोती
तेरे दामन में रहता हूँ
मुझे मालूम है हर पल
तेरी धड़कन में रहता हूँ
तू मुझमें और मैं तुझमें
दिखाई देते हैं सबको
तेरी परछाई बनकर
मैं तेरे दर्पण में रहता हूँ
बरस जाता हूँ बेमौसम
घिरें जब यादों के बादल
मैं सावन की तरह मनमीत की
अँखियन में रहता हूँ
जो पौधा रोपा था तूने
अब उसमे फूल आये हैं
बिखरती है तेरी खुशबू
मैं जब आँगन में रहता हूँ
तू धरती आसमाँ हूँ मैं
ये दूरी कैसे होगी कम
मिलन होगा भला कैसे
इसी उलझन में रहता हूँ