उर्मिला
पलकन अश्रुवन,
धीमी गति धड़कन,
विरह व्यथा सहन कर तड़पन,
लक्ष्मण को विदा कर वन,
उर्मिला धूमिल कर निज मन ,
बैठ भवन में याद करे बिछड़न,
शेष दिन चौदह वर्ष मे कितने,
गिन दिन रैन बिताती,
अविरल प्रिय पथ ,अथक निहारत ,,
बैठ झरोखे से देखे उपवन ,
लक्ष्मण कही न पाती,
नहीं कोई तार , नहीं कोई पाती,
चौदह वर्ष यूं ही बिताती,,
रीता यादव