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26 Oct 2022 · 1 min read

उर्मिला के नयन

देहरी पर लगे उर्मिला के नयन, जो नयन में रहे वो नयन आ रहे।
हाय! थमती नहीं धड़कनों की गति, जब से जाना है वापस लखन आ रहे।

हाल मन का सभी से छुपाती रही, धीर खुद ही खुदी को बँधाती रही।
उनको जाते हुए जो दिए थे वचन, सबको विधिवत अभी तक निभाती रही।
क्या कहे, क्या करे कोई इस हाल में, इंद्रियाँ देह की हो चुकीं हैं शिथिल।
आज होता नियंत्रण नहीं नैन पर, सो निगाहें बड़ों से चुराती रही।

गाल पर, होंठ पर, माँग पर, प्राण पर, सुर्ख से जो चढें वो बरन आ रहे।

देखती है अयोध्या सजी किस तरह, अंततः राम के राज ही आ रहे।
आ रही जानकी सब विदेही हुए, राजमहलो में पग तापसी आ रहे।
तीन माँओं की आँखे दिया बन गईं, छह के छह दीप मिल जगमगाने लगे।
क्या प्रजा, दस दिशा, ये धरा, आसमाँ, मिल के गाने लगे, राम जी आ रहे।

जिनकी उतरी खड़ाऊँ सुशोभित रही, राजमहलों में अब वो चरण आ रहे।
© शिवा अवस्थी

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