उर्मिला का त्याग (दोहा गीतिका)
वसुधा पर उर्मिले का , जाने आप त्याग
तपस्विनी वो जन्म ले ,यही समय की मांग
मान प्रिये का बडा हो , आज्ञा लूँ मैं मान
भातृ प्रेम पिय रखे जो,बाधक मुझे न जान
करते सेवा भातृ की , दिवा रात को जाग
सेवक लक्ष्मण सदृश हो,यही समय की मांग
देखभाल जो करो तुम , जाओ भाई साथ
याद आपकी पास हो , करूँ विनय मैं नाथ
साथ राम के जानकी , कैसै भोगूँ भोग
सेवा तीनों सासु की , कर धारूँ मैं जोग
जाऊँ तेरे मैं साथ नहिं , पर रखती अनुराग
प्यार हो परिवार में , यही समय की मांग
पीर हृदय में उठी जो , सुन लो मेरे नाथ
भाई साथ तुम चले वन,छोड़ पिया यह हाथ
निभा सको कर्त्तव्य तुम, जो भाई के हेतु
मुरति दिल में आपकी , वहीं बनाये सेतु
निशि दिन करती रही है, पिया का जो ध्यान
त्याग अनुपम उर्मिले का , धारिये परम ज्ञान
कलयुग ऐसा घोर है , कोन करे परित्याग
पत्नी उर्मिले सी हो , यही समय की मांग