उरी तो टीसेगी
मुदद्तों कहीं गहरी ये उरी तो टीसेगी|
पीठ पर चली है जो वो छुरी तो टीसेगी |
कूटनीति की बातें और कुछ सियासत भी,
मालकां तेरी ऐसी चातुरी तो टीसेगी |
कीमतें लगाते हैं जान की गँवाई जो ,
चार कागजों की ये पांखुरी तो टीसेगी|
चीथड़े हुये वां वो जिस्म औ यहाँ कुनबा ,
वो तड़प यहाँ होकर झुरझुरी तो टीसेगी |
सरहदें बहुत चीखीं रात भर कराहीं हैं,
चैन से बजी सबकी बांसुरी तो टीसेगी |
सुदेश कुमार मेहर