उम्र
उम्र का क्या है चलता सूरज है शाम ढले ढल जायेगा
वो मुहब्बत ही क्या ____ जो झुर्रियों से शरमाएगा
जवां बदन के शाख पे जो खिलते है अक्से नूर
ढलते बदन के मेहराव में आइना भी शर्माएगा
उम्र की दस्तक भला किस उम्र में नहीं होती
बचपन क्या जवानी को दस्तक नहीं देती
जवानी तो तीलियों के परों की रंगीनियां है
हाॅंथ लगते ही रंग हाॅंथों में उतर आएगा
मुहब्बत बदन के शाख पे न खिले तो अच्छा
रूह से रूह मिल गया गर तो मुहब्बत न फिर शार्माएगा
~ सिद्धार्थ