उम्र भर प्रीति में मैं उलझता गया,
उम्र भर प्रीति में मैं उलझता गया,
यूँ लगा एक दिन यह सुलझ जाएगी ।
नित्य बैठा किनारों पे यह सोचकर,
प्यास सरिता हमारी समझ जाएगी ।
✍️ अरविन्द “महम्मदाबादी”
उम्र भर प्रीति में मैं उलझता गया,
यूँ लगा एक दिन यह सुलझ जाएगी ।
नित्य बैठा किनारों पे यह सोचकर,
प्यास सरिता हमारी समझ जाएगी ।
✍️ अरविन्द “महम्मदाबादी”