* उम्र अगर ढ़लती नहीं *
2.4.17 प्रातः * 11.7
उग्र अगर यूं ढ़लती नहीं
कामनाये यूं छलती नहीं
नज़रें बचाते है यूं उनसे
नजरें कहीं दो-चार नहीं ।।
डर -डर निकलती है उम्र
सर -सर निकलती है उम्र
हर पल लहर लहर चलती
हरक्षण छलती चलती उम्र ।।
जलती है सूखी लकड़िया
नम जिस्म कब जलते है
दिल जलते है धूं-धूं कर
नम दिल से उठता धुंवा ।।
फ़िक्र अब क्यूं है दिल
बेफिक्र हो यूं महफ़िल
अलविदा कह अब दिल
चल अब जहां ओर कहीँ ।।
कर इबादत अपने ख़ुदा की
और पा ले जन्नत जहां की
नज़र उसकी कयामत लाती
नज्र अब उसको जवानी की।।
अब रवानी उसकी रंग लायेगी
पीछे यादें जमाने को रुलायेगी
क्या कहूं जमाना कब हंसेगा
जब वज़ह जमाने को रुलायेगी ।।
?मधुप बैरागी