उम्रभर
लिखा था क़िस्मत में जो
मुझे वही मिला उम्रभर
मैंने कभी कोशिश नहीं की
क़िस्मत बदलने की उम्रभर
अब शिकायत किससे करूं
ख़ुद कुछ किया नहीं उम्रभर
परिणाम का इंतज़ार कैसे करूं
कोई इम्तिहान ही नहीं दिया उम्रभर
जी चुराता रहा मेहनत से
आराम ही तो किया उम्रभर
कोई क्या देगा अब मुझे
मैंने किसी को क्या दिया उम्रभर
वो मंज़िल भी नहीं मिली
जिसकी चाहत रही मुझे उम्रभर
न पूरा कर पाया कोई सपना मेरा
सोचता हूँ क्या किया मैंने उम्रभर
जिसने लिखी है ये क़िस्मत
वो तो बदलने को तैयार था
गलती तो मेरी रही जो कोई
प्रयास ही नहीं किया मैंने उम्रभर
अब जीवन के आख़िरी पड़ाव में
कैसे करूँ, जो नहीं किया मैंने उम्रभर
अब तो उसकी चाहत भी नहीं रही
जिसकी तलाश थी मुझे उम्रभर
आख़िर वो पास खड़ी है आज मेरे
जिसके बारे में सुनता रहा मैं उम्रभर
आज अपने आहोश में ले लेगी मुझे
वो मौत, जिससे बचता रहा मैं उम्रभर।