उम्मीद…
न जाने किस
उम्मीद मेंं
पथराई आँखें
रोज़ टकटकी लगा
देखा करती बंद दरवाज़े को
निरंतर……
इक आस है अभी भी
दिल के किसी कोने मेंं
कि इक दिन
जरूर लौटेगा लाल उसका
सात समुंदर पार से
याद है ,जब बचपन में
खेला करता था
हवाई जहाज से
कहता, उडना है
इसमें बैठकर
तब क्या पता था
सच मेंं छोड़ ये बसेरा
उड जाएगा दू…..र ।