उम्मीद तो नही
उम्मीद तो नही कि हम तुम्हे भुला पायेगे।
बस एक खलिश सी दिल में सदा पायेगे।
चली जायेगी रात जब सपने चुरा कर,
फिर कैसे हम आँख तुमसे मिला पायेगे।
बाद मुद्दत जब कभी याद आये भी हम
क्या ऐसे ही अपना हक जता पायेगे।
नाजुक बहुत है ये काम उल्फत का दोस्त
टूटते प्याले कैसे जाम पिला पायेगे।
नम आँखे तलाश करती है हमसफर
कैसे कहे कि अब हम न निभा पायेगे।
सुरिंदर कौर