उम्मीद की डोर
सादर नमन 🙏💐 प्रस्तुत है कुछ स्वरचित और मौलिक पंक्तियाँ जिसका शीर्षक है “उम्मीद की डोर ”
मन में कोई कसक रहती है, देश के हालात देखकर,
हर रोज़ नई उलझन मिलती है, ये सवालात देखकर
लाचार हैं कुछ करें तो क्या करें बस में कुछ है नहीं
दिल रोता है अपनी बेबसी के आँसू दिन रात देखकर
हाकिम तो महलों में बैठे, सुनता नहीं कोई पुकार,
ग़रीब की झोपड़ी टूटती है उसकी औकात देखकर
आँखों में जो सपने थे, अब वो धुंधला से गए,
किस राह पे चलें, ये भी समझ न आता जुल्मात देख कर |
बस उम्मीद की डोर थामे हैं, जियेंगे किस भरोसे,
कभी कोई बदलाव आएगा, ये ख्यालात देखकर।
©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश )