उम्मीदों के परिन्दे
उम्मीदों के परिन्दे
जब परवाज़ करते है
ख्वाबों के ऊँचे आसमां में ,
उनके पसीने की बूंदें
दरार बना देती
सख्त से सख्त चट्टान में ,
बेबसी सहेज के
बेचते जो भूख को
दर्द की दुकान में ,
खुद को जला देते
रौशनी की चाह में
रात के जहान में ,
नज़र आते
तब उनके हौंसले
सफलता की दास्ताँ में ,
छेनी हथौड़ी की चोट से
जो पत्थर तराशे जाते
बदल जाते भगवान में ,