उम्मीदें – वादे -इरादे
उम्मीदें, वादे,इरादे और चिकनी चुपड़ी बातें।
इन सब के पीछे बैठी हैं ,दुख की कई जमातें।
जीवन में नहीं कुछ निश्चित ये जानती है ये दुनिया,
जीवन को बिता देती है ,बस यूँही सुनते- सुनाते।
जीवन में कभी ठहराव नहीं है।
बिन स्वार्थ के लगाव नहीं है।
पर झूठ दौड़ता चेतक जैसा,
जिसका कोई पाँव नहीं है।।
दीवारों से भी सुन लेते हैं ,कुछ लोग आते जाते।
उम्मीदें, वादे,इरादे और चिकनी चुपड़ी बातें।
तेरे मुँह पर मेरा और मेरे मुँह पर तेरा।
रात में भी करवा देते है, चारो ओर सवेरा।
सोच की ज्योति से उजला कर दे अपने जीवन की राहें,
राहों में कही हो न जाए ,ये घनघोर अंधेरा।
जीवन मे आती – जाती हैं ,ऐसी ही कई रातें।
उम्मीदें, वादे,इरादे और चिकनी चुपड़ी बातें।
हम खुद से ज्यादा दूर नहीं।
और ऐसा वैसा मंजूर नहीं।
गर सोच लिया मंजिल पाना है,
कोई कर सकता मजबूर नहीं।
औरों को हम खो सकते हैं ,खुद को पाते- पाते।
उम्मीदें, वादे,इरादे और चिकनी चुपड़ी बातें।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी