उम़्मीद
मन पंँछियों की तरह उड़ान भरने लगता है।
पर दिम़ाग उस उड़ान पर लग़ाम रखता है।
दिल तो चाहता है बहुत पर हौसला नही बँधता।
कुछ कर गुज़रने की हिम्मत हालातों से समझौता कर लेती है।
म़ुस्तकबिल की फ़िक्र हमेशा सताती रहती है।
इसी तरह रफ़्ता रफ़्ता ज़िन्दगी आगे बढ़ती रहती है।
ये सोच लिये कि शाय़द कभी तो दिन फिरेंगे ।
जब हम अपने मन माफ़िक मर्ज़ी को उड़ान देने की हिम्मत कर सकेंगे।