उमंगों की राह
भोर हुई शुरुआत नयी कर,
तिमिर का हुआ अब अंत,
जीवन गर जीना है तो,
ख्वाहिशो को अनंत कर।
बीते दिन को विस्मृत कर दे,
स्वछंद सोच से विहार कर,
जोश और ऊर्जा से जीवन,
उमंगता का संचार कर।
बहती वयार संग लेकर के,
नव सृजन में अभिरंच दे,
नव तरु पल्लव स्वरों से,
तू शांत मन से अभितन्ज दे,
घोर निराशा से उठकर,
तू आशा में अपना घर कर,
दिव्य लौ से उठती रोशनी,
से अंधकार को विध्वंश कर।
तू मालिक स्वतन्त्र धरा का,
कर थोड़ी पहचान ज़रा,
राह घड़ी में भटक नही,
ना बडा़ तू अनजान बन,
पंख उड़ा कर आसमां में,
छू ले अनंत ऊँचाईयों को,
गर निकला समय हाथ फिर,
तू पछतायेगा मौन पड़ा।