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9 Jun 2020 · 1 min read

उभरा हुआ ये दर्द ठहरता नहीं है क्यों

उभरा हुआ ये दर्द ठहरता नहीं है क्यों
वो बेवफ़ा नज़र से उतरता नहीं है क्यों

जो वक्त बेरहम हो गुजरता नहीं है क्यों
मिलता है ज़ख्म गहरा वो भरता नहीं है क्यों

अपनी ये जान दे दूँ तुम्हारे लिए सनम
कहते हैं सब मगर कोई मरता नहीं है क्यों

जो भूलना था मुझको वही याद आ रहा
आँखों में अश्क़ मेरी ठहरता नहीं है क्यों

करता है ज़ुल्म अपने ही माँ बाप पे पिसर
खुद कह्र से खुदा के वो डरता नहीं है क्यों

सूखा पड़ा है खेत जमीदार क्या करे
बरसात अब्र कोई भी करता नहीं है क्यों

कितने दिनों से सीखता ‘सागर’ यहाँ ग़ज़ल
या रब मेरा हुनर ये निखरता नहीं है क्यों

3 Likes · 2 Comments · 294 Views
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