उभरा हुआ ये दर्द ठहरता नहीं है क्यों
उभरा हुआ ये दर्द ठहरता नहीं है क्यों
वो बेवफ़ा नज़र से उतरता नहीं है क्यों
जो वक्त बेरहम हो गुजरता नहीं है क्यों
मिलता है ज़ख्म गहरा वो भरता नहीं है क्यों
अपनी ये जान दे दूँ तुम्हारे लिए सनम
कहते हैं सब मगर कोई मरता नहीं है क्यों
जो भूलना था मुझको वही याद आ रहा
आँखों में अश्क़ मेरी ठहरता नहीं है क्यों
करता है ज़ुल्म अपने ही माँ बाप पे पिसर
खुद कह्र से खुदा के वो डरता नहीं है क्यों
सूखा पड़ा है खेत जमीदार क्या करे
बरसात अब्र कोई भी करता नहीं है क्यों
कितने दिनों से सीखता ‘सागर’ यहाँ ग़ज़ल
या रब मेरा हुनर ये निखरता नहीं है क्यों