उपहास
एक शादी समारोह में खाने की प्लेट हाथ मे ली ही थी कि पीछे से एक परिचित सज्जन ने आवाज़ दी।
कैसे हो?
मैंने अभिवादन किया ।
उनकी नज़र मेरे पुराने फैशन के कोट और पतलून पर पड़ी तो उनके चेहरे पर हल्की सी उपहास भरी मुस्कान आई।
उन्होंने कहा , ” वाह, क्या बात है, बड़े जंच रहे हो”
मैं थोड़ा रक्षात्मक हो गया
और कहा, जल्दबाजी में यही सामने दिखी।
उन्हें क्या बताता की मेरे पास बस एक ही है जो मैंने दशकों पहले किसी रिश्तेदार की शादी में सिलवाई थी।
उनकी मुस्कान कुछ देर के लिए मेरे कपडों पर रेंगती रही।
तभी उस सज्जन को एक सभ्रांत से दिखने वाले व्यक्ति ने आवाज दी।
और वर्मा, सुनाओ क्या हाल है?
वर्माजी ने बड़े आदर के साथ उनको प्रणाम किया।
फिर इधर उधर की बातें होने लगी। तभी उन्होंने वर्माजी से पूछा कि सिंह साहब की बेटी की शादी में आज चलोगे तो महरौली के फार्म हाउस पर?
भई, थीम शादी है, नीले कोट और रेड टाई का ड्रेस कोड है। आफिस के कुछ खास लोगों को ही बुलाया है।
वर्मा जी उत्तर की तलाश में इधर उधर ताकने लगे और फिर अपनी प्लेट मे कुछ डालने के लिए बढ़ गए।
अब मेरी कमतरी ने बेचारे वर्माजी को अपनी गिरफ्त में ले लिया था।
मेरे चेहरे के भाव अब सामान्य होने लगे थे।
मैं, खाने की प्लेट को रखकर वाशरूम की और बढ़ा। टिश्यू पेपर से हाथ पोछते वक्त आईने में देखा तो मेरी पुराने जमाने की कोट पतलून अब उतनी भी बुरी नही लग रही थी।
ये सिलसिला यूँ ही बदस्तूर चलता रहेगा जाने अनजाने।
मैं गौर करता रहा कि मेरा सहज या असहज होना दूसरे तय करते आ रहे हैं!!!!