उपहास ~लघु कथा
डरी सी , सहमी सी रहा करती थी वो !
क्या हुआ पूछने पर, मौन ही रहती थी वो !
मानो उसका ह्रदय किसी पीड़ा से गहरी खाई में खो गया हो, किसी भी सांसारिक बातों का उसपर असर ही ना हो..।
चिंता का विषय तो था ही, क्योंकि उसका मुस्कुराना, उसका बोलना बेहद याद आता था । बड़ी सोच विचार के बाद, संसार की वास्तिवकता भरी प्रेरणादायक बातों से हटकर उसे मैंने आध्यात्म से जुड़ी एक पंक्ति कही…
मैंने कहा , आध्यात्म में कहा जाता है कि ,
अपने ह्रदय का आत्मचिंतन करने से, अपने ज्ञान के द्वार खोल हम उस परमात्मा से सारे जवाब पा सकते है।
मुझे यकीन था या कह लो अनुभव था , की
हर दुखी इंसान अपने दुख में ईश्वर को अवश्य स्मरण करता है । ऐसा जान कर मैने उसे आत्म चिंतन की राह पर चलने छोड़ दिया ।
एक सुखद जीवन के लिए अपने वर्तमान की चिंताओं से मुक्त होना अनिवार्य है, इसलिए उसके लिए सतत रूप से चल रहे जीवन की पीड़ाओं से मुक्त होना बेहद जरूरी था।
काफी दिनों बाद जब मैं पुनः लौटा तो उसके चेहरे पर हल्की सी चमक दिखाई देने लगी थी, शायद अब वह उभरने लगी थी…किंतु अब भी उसके मस्तक पर थोड़ी दुविधाएं नजर आती थी, मैंने जानने की कोशिश की, तब उसने कहा :-
आपके कहे अनुसार मैंने बड़े दिनों के आत्म चिंतन के उपरांत आज कल्पनाओं के गर्भ से जाना की मुझे जीवन मे किस चीज़ से अधिक पीड़ा मिली है।
मैंने और जानने की कोशिश की तो उसने कहा :-
मुझे सबसे ज्यादा पीड़ा, दुसरो के द्वारा मुझ पर किये गए उपहास के कारण हुई है। जो अब मेरे ह्रदय में नासूर बन अपने पांव पसार चुका है।
उसकी समस्या विकट थी, क्योकि जीवन के हर पग पर ऐसे व्यक्ति राह में मिलते ही है, जो उपहास करे बगैर नही रहते , ऐसे में उसके इस डर को खत्म करना जरूरी था ।
तब मैंने कहा :-
सबसे बड़ा न्यायकर्ता हमारा ईश्वर होता है, जो हमारे कर्मो के अनुरूप ही हिसाब किताब करता है..! वो पग पग पर परीक्षा लेता है । अपने आसपास घिरे लोगो के विचारों से बचकर स्वयं को निष्कलंक रखना मुश्किल जरूर है लेकिन भूलना मत ईश्वर आपके मन को जानता है । व्यवहारिक दुनिया भले आपका आंकलन जैसे भी करे…इससे डरना नही है।
हां… सभी के जीवन मे ऐसा वक्त आता ही है…जब सबकी घूरती नजरें , आपके लिए कही गई बाते, आपके लिए समूह में बैठ कर हो रही चर्चाएं , उस जगह में आपके लिए अभिशाप सी बन जाती है। एक घुटन सी वायु में होने लगती है..।
पर उस वक्त स्वयं को मजबूत रखना और मौन साध, ईश्वर के न्याय पर विश्वास रखना ही सबसे सरल उपाय है।
मेरी कही बातों को सुन वो हल्की सी मुस्कुराई एवं पुनः आत्म चिंतन करने चले गईं…मानो उसने एक पढ़ाव जीत लिया हो…।
वर्तमान में नैतिकता का अभाव हर पल देखने को मिल रहा है ।
आपके व्यावहारिक एवं सामाजिक जीवन में “उपहास” ने सबसे ज्यादा जगह बनाई हुई है।
कटु सत्य यह है कि
जाने अनजाने हम भी कभी न कभी किसी का उपहास करते ही है ।
” उपहास” किसी के लिए सदैव का अभिशाप भी बन सकता है,
इसलिए इसे करने से स्वयं भी रुके और दूसरों को करने से भी अवश्य रोकें ।