* उपहार *
** मुक्तक **
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बहुत अनमोल जीवन में समझ लो प्यार होता है।
सुपावन और नैसर्गिक यही उपहार होता है।
कहीं भी स्वार्थ की चाहत नहीं होती जहां कोई।
वहां हर स्वप्न जीवन का स्वयं साकार होता है।
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सुरक्षा देश की करते चढ़ाते भेंट जीवन की।
कभी चिन्ता नहीं करते स्वयं के स्वार्थ साधन की।
रखा करते सुरक्षित जो हमेशा देश की सीमा।
बढ़ाते हैं कदम आगे गिराते भीत उलझन की।
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यही पहचान है अपनी सनातन देश है अपना।
लिए समभाव की अवधारणा परिवेश है अपना।
युगों से विश्व को आलोक से जगमग किया जिसने।
दिया श्रीकृष्ण ने जग को अमर संदेश है अपना।
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बनाकर है रखा मजबूरियों को क्यों जमाने में।
बढ़ाते जा रहे क्यों मुश्किलें रिश्ते निभाने में।
जरा सोचो हटाओ आवरण जो है पड़ा मन पर।
भलाई है हमेशा वक्त पर हिम्मत दिखाने में।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य