उपहार
सत्कर्मों के बदले रे बन्धु
मनुज जीवन इक उपहार।
कहते हैं कई-कई जन्मों के
संचित पुण्य का है यह सार।
देकर हमें मानव योनि प्रभु
दिखलाता है यह संसार।
सत्कर्मों के बदले रे बन्धु
मनुज जीवन इक उपहार।
कर निज हृदयतल निर्मल
ममता करुणा का आगार।
रख उर विपुल त्याग मय
स्वर वीणा के झंकृत तार।
सत्कर्मों के बदले रे बन्धु
मनुज जीवन इक उपहार।
कर ईश्वर की भक्ति अपार
कलुषितता का कर संहार।
उस जीवन का हो उद्धार
जो है ईश्वर प्रदत्त उपहार।
सत्कर्मों के बदले रे बन्धु
मनुज जीवन इक उपहार।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित वहां मौलिक रचना
©