उपवन
सुन,मनु यह जीवन है उपवन,उपवन में फूल सहस्त्र हज़ार।
चंपा, चमेली से खूब खिले मन,जुही, कचनार से आए बहार।
हरित चुनरिया धरा ने ओढ़ी,सुमनों से किया शुभश्रृंगार
झूला सुख दुख का लेता हिलौरें, संग झूल रहे नर-नार।
सिर पर छत सभी जीवों ने, नीलम अंंबर से पाई
दिन की सारी थकान मिटाने, निशा ने लोरी सुनाई।
रहते सदा फूल संग कांटे,यही सृष्टि का संचार
सुख-दुख की खुशबू से भरा यह उपवन रूपी संसार।
सुन,’जीव’ परिंदा उड़ जाना है, जीवन हंसकर तू गुज़ार।
लहरों सी हलचल कभी मृत्यु की चुप्पी, घमंड है बेकार।
सूखे बिखरे पत्तों सी खलबल,जीवनहै नदी की कल-कल,
नव प्रभात रवि का उगना कभी चाँद का छिपना,यही है छल।
नीलम शर्मा