उपदेशी हैं मात्र बहुत,,,
कहने को है बात बहुत।
पर चुप्पी भी साथ बहुत।
बात बढ़ेगी डर लगता है,
जीवन में है घात बहुत ।
दुनिया में प्रचार बहुत।
छिपकर होता वार बहुत।
सच का पता नहीं हमको,
झुठ में होता रार बहुत।
धर्म-कर्म का ज्ञान बहुत ।
मर्म ना जाने गान बहुत ।
गाल बजाना आता सबको,
उपर-ऊपर शान बहुत ।
भले बुरे के शास्त्र बहुत।
पढ़ने वाले पात्र बहुत ।
गुनने का ना वक्त मिले,
उपदेशी हैं मात्र बहुत ।
इन्दु