उपदेश:एक बार फल पाक लिये नहीं फेर पाकैं सैं
।। उपदेश ।।
टेक : – एक बार फल पाक लिये नहीं फेर पाकैं सैं ।
गीदङों की तावल सैं के बेर पाकैं सैं ।
( 1 ) है दुनियां का दस्तूर खुशी हो ब्याह के सावे मैं
करैं पाटङा फेर आँट खुलजा मुकलावे मैं ।
उस हर नै पैदा करी सूळ सेही और जहावे मैं ।
माँटी मथै कुम्हार त्यार हों बर्तन आहवे मैं ।
तोङ : – लियो देख पजावे मैं ईटों के ढेर पाकैं सैं
गीदड़ों की तावळ सैं के बेर पाकैं सैं ।
( 2 ) सुर्ख शरीर शरद होज्या जब वचन सुणै ठण्डे
ऐसा रस मालुम होता ज्यूं चूंस लिये गण्डे ।
हाँसी और मजाक मशखरी करते मसटण्डे ।
कविता मैं रस भर देते कवियों के हथकण्डे ।
तोङ : – दे अण्डे मुर्गी सुण मुर्गे की टेर पाकैं सैं ।
गीदङों की तावळ सैं के बेर पाकैं सै ।
( 3 ) : – भूण्ड मगन गोबर मैं भंवरा बाग बीच मैं हो ।
पञ्चानन कानन मैं मीन तङाग बीच मैं हो ।
ना कोयल के लक्षण मिलते काग बीच मैं हो ।
बेरा ना के लिख राखी इस भाग बीच मैं हो ।
तोङ : – आग बीच मैं कच्ची वस्तू गेर पाकै सैं ।
गीदङों की तावळ सैं के बेर पाकैं सैं ।
( 4 ) मूर्ख नर खर खाते धक्के भूल भरम के जी ।
कुटिल कुचाली तमशी माणस शुभा गरम के जी ।
केशव राम गुलाम बनो उस पार ब्रह्म के जी ।
कुन्दन लाल गुरु कहते हैं बोल मरम के जी ।
तोङ : – नन्दलाल धर्म के मीठे फल, लगें कुछ देर पाकैं सैं
गीदड़ों तावळ सैं के बेर पाकैं सैं ।
कवि–श्री नंदलाल शर्मा पात्थरवाली
टाइप कर्ता– दीपक शर्मा