उन गिद्धों को मानव क्यूँ बनाया है
उस मानव पर मुझे घिन आती है,
जो नारी पर गलत नजर डाले हैं।
सामने तेरी औकात क्या होगी,
चार पाँच होकर गैंग बनाते हैं।
खुदा को भी बहुत पछतावा है।
उन गिद्धों को मानव क्यूँ बनाया है।
कुकर्म की गंदगी मन में बसाया है,
सुनसान में नारी को हवस बनाया है।
न जानें कितने बहन बेटी की ,
उनके अरमानों को उजाड़े है।
रहम किसी के दिल में न हुआ,
दरिंदगी का नंगा नाच नचाए है।
आग में जिस नारी को जलाया है,
लपटों से भी आवाज सुनाई है।
अरे नामर्दों मर गयी तुम्हारी इंसानियत,
बेगुनाह के लिए लाज भी न आई है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~
रचनाकार डिजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना,बलौदाबाजार(छ.ग.)
मो. 8120587822