उन्हें क्या सज़ा मिली है, जो गुनाह कर रहे हैं
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उन्हें क्या सज़ा मिली है, जो गुनाह कर रहे हैं
कई ज़िंदगी के ख्वाबों, को तबाह कर रहे हैं
तुझे फर्क़ ही नहीं है, कि वो कैसे जी रहे हैं
जो अज़ीयतों से अब तक, यूँ निबाह कर रहे हैं
उन्हें ही नहीं मिली क्युँ, गज़ दो,जमीन या रब
जो परिंदों.. बेज़ुबानों, को पनाह कर रहे हैं
मायूस हो गए हैं अब जिंदगी से इतना
कि अपने उजालों को, भी सियाह कर रहे हैं