उन्मुक्त पंछी
हमारी चहक में न अंतर पड़ा है ।
न कोई हमें रोक करके खड़ा है ।।
हमें भी किसी से न शिकवा गिला है ।
हमें जो मिला है प्रकृति से मिला है ।।
न हमने कभी जंगलों को उजाड़ा ।
न हमने कभी दूसरों को पछाड़ा ।।
हमें आज भी सुख वही मिल रहा है ।
हमारा चमन तो अभी खिल रहा है ।।
हमें खेत में मिल रहे खूब दाने ।
न देता है हमको कोई आज ताने ।।
प्रकृति जहाँ मुड़ती वहीं मुड़ रहे हैं ।
हम उन्मुक्त आकाश में उड़ रहे है ।।
प्रकृति से अनाचार जो भी करेगा ।
वो ऐंसे ही बेमौत एक दिन मरेगा ।।
मनुज तुमने भी इसको बेजा सताया ।
इसी का ये परिणाम है आज पाया ।।