उन्मादी शासक!
हर युग में,
पैदा हो ही जाते हैं,
उन्मादी शासक,
उनके उन्माद का,
दंस झेलती है,
पूरी दुनिया,
जनता,
जनता में ही हैं,
उनके पूजक, उपासक,
भक्त-अंधभक्त,
अनुयाई,
उभर कर सामने आते हैं,
बनकर परछाईं,
और पूजते हैं उसके बहसी पन को,
और तब वह शासक,
अधिक उत्साह,
हौंसले के साथ,
बिना वजह,नाहक,
बढ़ाता है कदम,
करने को मानवता का दमन,
सिर झुका कर स्वीकार करो,
या फिर तैयार रहो,
सहने को हर तरह का क्रंदन!
ऐसे शासकों का,
कोई जमीर नहीं होता,
ना होता है कोई दीन ईमान,
जो जगाया जा सके,
इंसानियत के हित में,
उन्हें अपने अरमानों की खातिर,
कुछ भी स्वीकार्य है,
चाहे मिट जाए,
इस जहां से,
उसमें विचर कर रहे,
जीव जंतु,
जल-वायु,
धरती अंबर,
या परियावरण,
उन्हें तो बस,
पाना है मुकाम,
अपने अभियान का,
पूरा करना है सपना,
अपने अभिमान का,
मानवता की हिफाजत से बड़ा,
उनका अपना अहंकार है,
मुठ्ठी भर लोगों का,
उनका अपना संसार है,
और यही मुठ्ठी भर लोग,
हावी हैं पूरी दुनिया पर,
उनके अंधभक्त,कर रहे हैं,
उनकी हौसला अफजाई,
एवं जय जय कार,
मर रहे हैं असहाय जन,
हो रहा है नर संहार,
मनुष्य भी नहीं हैं जो,
देवता बनने चले हैं वो,
ये भूल कर,
है कोई वह अदृश्य शक्ति,
जो रखती है नजर,
हर किसी के काम काज पर,
नहीं सिखा है उन्होंने,
शिव की तरह विषपान करना,
मानवता को उबारने के लिए,
हलाहल को स्वीकार करना,
पर नहीं करता है वह,
अन्याय का कोई भी कुचक्र बर्दाश्त,
संहार का देव भी है वह,
है वही तो महाकाल,
कौन है जो आज तक,
करके दमन ,
भोग रहा है,
इस धरा पर,
सुख जरा,
कौन बच पाया है,
उसकी मार से भला,
चेत जाओ आज भी,
वक्त बहुत नहीं गया,
देर हो गई अगर,
तो छुपने को भी ना मिलेगी जगह!!