उनसे कहते भी तो क्या
उनसे कहता भी तो क्या,वो मोहब्बत था
गुजरा मै उस वक्त से जो बेवक्त था
उनसे सुनता भी तो क्या
जो पहले नरम तो टूटने पर वो सख्त था
कहने वाले ने आँखो से ही कत्ल कर दिया
कहर था आँखो मे,सच कहूँ तो वो नजाकत था
खैर दर्द हमने ही दिया उन्हे
तो आँखो से निकला वो आँसू जो रक्त था
अफसोस…झूक गयी नजर,जो मुडा मै इस कदर
के जोर लगी कलाई पर,देखा तेरा जो हस्त था
वास्ता न होता तो आज क्यूँ आते
तेरे होंठो से सुना ये लफ़्ज,जो जबरदस्त था
शर्मिंदगी थी हमे अपने किये पर,तूने कुछ यूँ समझाया
के “राव” उगने से पहले सूरज भी तो अस्त था
मेरे गुनाहो का घडा पीते चली गयी,जो बहुत था
तेरे आँखो से निकला वो रक्त नही,वो मोहब्बत था ..मोहब्बत था
श.र.म