उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
ग़ज़ल
उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
जैसे ताज़ा गुलाब क्या कहने
लब पे है जी, जनाब क्या कहने
उनका लहजा रबाब क्या कहने
खोले गेसू, हवा में जब उसने
आये घिर कर सहाब¹ क्या कहने
दिल का महिवाल डूब जाता है
उनकी आँखें चनाब क्या कहने
वो सरापा² है हुस्न का पैकर
ज्यों मुसव्विर³ का ख़्वाब क्या कहने
ख़ाली कोई सवाल लौटा नहीं
इतने हाज़िर जवाब क्या कहने
यूँ वो निकले ‘अनीस’ बन ठन कर
लग रहे हैं नवाब क्या कहने
– अनीस शाह ‘अनीस ‘
1.बादल 2.सिर से पैर तक 3.चित्रकार